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लखनऊ मेट्रो में हैं कुछ ऐसी सुविधाएं जो आपको किसी और मेट्रो में नहीं मिलेंगी

lucknow metro starts with various special facilities

ट्रांसपोर्ट नगर से चारबाग़ तक लखनऊ शहर में मेट्रो चलना शुरु हो गई है. यह दूरी लगभग 8.5 किलोमीटर की है. मेट्रो के दरवाज़े कभी दायीं ओर खुलेंगे तो कभी बायीं ओर.

अब करते हैं कुछ काम की बात. लखनऊ मेट्रो कार्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर कुमार केशव ने बताया है कि ये मेट्रो नहीं मेट्रो का बाप है. मतलब इसमें इतनी लेटेस्ट टेक्नॉलजी लगी है जिसका कोई जवाब नहीं. इसमें हर फीचर में एलईडी लगी है. यात्री ड्राइवर से बात कर सकता है. ट्रेन जितनी तेजी से बढ़ेगी उतनी ही तेजी से रुक जाएगी. लेकिन अभी तो इसका सबसे बड़ा फीचर यही दिखा है कि इसके सहारे नई सरकार क्रेडिट लूट सकती है. पिछली वाली सरकार से. मतलब मेहनत करे मुर्गा अंडा खाए फकीर. खैर पॉलिटिक्स में न उतरते हुए अपन लेटेस्ट फीचर्स की बात करेंगे.

1. लैट्रिंग-बाथरूम अटैच

देखिए ट्रेन का सौंदर्य इसी में है जब उसमें लैट्रिंग-बाथरूम साथ में हो. किसी और मेट्रो में तो है नहीं, उम्मीद है लखनऊ मेट्रो में होगी. कभी कभी क्या होता है कि बंदे को साढ़े नौ बजे ऑफिस पहुंचना होता है तो 9.25 पर नींद खुलती है. तो वो वैसे ही ऑफिस चल देता है. अगर मेट्रो में सुविधा होगी तो अंदर ही निपटकर, नहाकर साफ सुथरा होकर ऑफिस पहुंचेगा. और लखनऊ मेट्रो में ऐसे नजारे भी देखने को नहीं मिलेंगे.

2. पीकदान

देखो वो पूरा एरिया पान मसाले का जबर शौकीन है. चारबाग में तो बंदे के मुंह से सुपारी और गाली एक साथ निकलती है. अगर वो मुंह में रजनीगंधा भर के कदमों में दुनिया, आईमीन कोने में थूकेगा तो मेट्रो गंदी होगी. इसलिए पीकदान बहुत जरूरी है, हर सीट के नीचे होने चाहिए.

3. झालमुड़ी

मेट्रो में सबसे बुरा कल्चर ये है कि उसमें कुछ बिकने नहीं आता. न पान मसाला, न मूंगफली, न कुकुरमुत्तही चाय. तो ये फीचर लखनऊ मेट्रो में रहेगा. झालमुड़ी नमकीन और ‘चाय बोलीय चाय’ चिल्लाने वाला जरूर आएगा.

4. कुचालित दरवाजे

स्वचालित दरवाजे बहुत घटिया चीज है. लखनऊ मेट्रो में नहीं होगी ये चीज. दरवाजे हमेशा खुले रहने चाहिए. क्योंकि जब मेट्रो दौड़ने लगे तो आधी से ज्यादा जनता प्लेटफार्म पर दौड़कर गाड़ी में चढ़ सके.

5. प्रेशर ड्राइवर

ड्राइवर से बात करने की सुविधा तो है, आपने बस इतना ही जाना. क्या बात करनी है वो भी जान लो. दरअसल ड्राइवर और पैसेंजर के बीच कम्युनिकेशन का जाल कुछ सोच समझकर बिछाया गया है. कि पैसेंजर को जहां कहीं जाने के लिए देर हो वो ड्राइवर पर दबाव बना सके. और कह सके “बढ़ा ले भाई, कि बैलगाड़ी चला रहा है?”

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