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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तो स्मृति ईरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं बचा सकते


हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेहद ख़ास मानी जाने वाली केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी एक बार फिर अपनी डिग्री को लेकर विवादों में फंस चुकी हैं.

डिग्री विवाद पर फिर फंसी स्मृति

जी हाँ डिग्री मामले को लेकर हाल ही में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाते हुए इलेक्शन कमीशन से स्मृति की डिग्री जांचने को कहा है. साथ ही पटियाला हाउस कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से उनके सभी सर्टिफिकेट को सत्यापित करने का भी आदेश दिया है.

फ़र्जी डिग्री विवाद ने उड़ाई बीजेपी की नींद

कोर्ट ने अपनी सुनवाई शुरू की तो मानो एक बार फिर स्मृति के साथ-साथ पूरी भाजपा की नींद उड़ गई. बता दें कि कोर्ट की सुनवाई में ये तय होना था कि फर्जी डिग्री मामले में क्या केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को तलब किया जाए या नहीं? क्योंकि स्मृति पर आरोप है कि उन्होंने चुनाव के हलफ़नामे में इलेक्शन कमीशन में पेश एफिडेविट्स में अपनी एजुकेशन क्वालिफिकेशन की जानकारी जलत दी थी.

डिग्री विवाद को लेकर कोर्ट ने स्थगित किया मामला

जानकारी दे दें कि शिकायतकर्ता और स्वतंत्र लेखक अहमर खान ने इस मामले को लेकर कोर्ट में अपनी दलीले राखी थी जिसके बाद ही स्मृति की एजुकेशनल डिग्री के बारे में इलेक्शन कमीशन और दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरफ से कोर्ट में पेश की गई सभी रिपोर्ट पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. लेकिन अब सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इसी मामले को 15 अक्टूबर तक स्थगित कर दिया है.

अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में स्मृति ने दी थी गलत

जानकारी

अगर याद हो तो बीते साल अहमर खान ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि स्मृति ईरानी ने 2004, 2011 एवं 2014 में चुनाव आयोग के समक्ष अपने जो हलफनामे दाखिल किए थे, उसमें अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर बिलकुल गलत जानकारी दी हैं.

स्मृति पर लगे हैं जानबूझकर चुनाव आयोग को गुमराह करने के

आरोप

अहमर खान ने केंद्र मंत्री पर ये आरोप भी लगाया है कि स्मृति ने चुनाव आयोग के समक्ष दाखिल हलफनामों में अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर जानबूझकर गुमराह करने वाली सूचना दी. जिसके चलते अब कोर्ट को इस मामले पर सुनवाई करनी चाहिए.

जानिये क्या था पूरा मामला? 

दरअसल, पिछले दो चुनावों के शपथ पत्र में ईरानी ने जो जानकारी दी हैं वो आपस में मेल नहीं खाती. क्योंकि एक शपथ पत्र में स्मृति ने खुद को बीकॉम बताया है तो दूसरे में बीए.

2004 में बीए तो 2014 में बीकॉम बताकर फंसी स्मृति 

बता दें कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव में स्मृति, दिल्ली के चांदनी चौक से कपिल सिब्बल के खिलाफ मैदान में उतरी थीं, जिसमें उन्होंने अपना नामांकन करते हुए अपनी शैक्षणिक योग्यता बीए बताई थी जो डिग्री उन्होंने 1996 में पूरी की थी, लेकिन जब 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ शपथ पत्र भरा तो उसमें स्मृति ने अपनी एजुकेशन बीकॉम प्रथम वर्ष बताई जो पहले जानकारी के अनुसार बिलकुल विपरीत थी.

दोनों हलफनामों में से केवल एक ही सही है

ऐसे में अब विपक्ष उनपर ये आरोप लगा रही हैं कि स्मृति ईरानी की ओर से पेश दोनों हलफनामे से ये साफ़ होता हैं कि उनमे से केवल एक शपथ ही सही है.

अदालत ने डिग्री मामले को माना सुनवाई योग्य

इसी मामले को लेकर शिकायत करते हुए अहमर खान ने अदालत से स्मृति के 10वीं और 12वीं परीक्षा के बारे में जानकारी लेने के लिए सीबीएसई को भी निर्देश देने की मांग की थी, जिसे अदालत ने पहले तो इस ममले से सीधा जुड़ा नहीं पाया, लेकिन अब अदालत ने इसे सुनवाई योग्य करार करते हुए बीजेपी को करार झटका दे दिया है.

चलिए आब खुद ही देखें कैसे दिल्ली कोर्ट ने उड़ा दी एक बार

फिर केंद्र की बीजेपी सरकार की नींद !

 

देखिये वीडियो:-