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सर्वे: इस्लाम एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमे सबसे कम तलाक होते हैं

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सुप्रीम कोर्ट में 11 मई को तीन तलाक पर सुनवाई होगी. फिर भी एक चौंका देने वाली बात सामने आई है और यह कि सभी लोग यह मानते हैं कि मुसलामानों में तलाक आसानी से हो जाता है जिसकी वजह से मुसलामानों में तलाक सबसे ज्यादा होता होगा. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है और एक सर्वे भी किया गया जिसमे यह बात पता चली कि मुसलामानों में तलाक की संख्या सबसे कम है।

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ लगभग साढ़े 13 लाख तलाकशुदा लोग इंडिया में हैं. जिनमें से 9 लाख औरतें हैं. यानी लगभग 70 फीसदी. जिसका मतलब ये है, कि मर्द तलाकशुदा जीवन कम बिताते हैं. वो दूसरी शादी कर लेते हैं. हालांकि एक्टिविस्टों को मानना है कि अधिकतर तलाक रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं. जिससे ये डाटा अधूरा है।

अब बात भारत में डिवोर्स की:

1. हर हजार शादीशुदा लोगों में लगभग 2 से 3 कपल का डिवोर्स होता है.

2. हर हजार शादी कर चुके मर्दों में लगभग 1 से 2 मर्द तलाकशुदा हैं.

3. हर हजार शादी कर चुकी औरतों में लगभग 3 औरतें तलाकशुदा हैं.

इसका मतलब समझे, दया? मतलब ये, कि पुरुष तलाक के बाद शादी करने में आगे हैं. क्योंकि तलाकशुदा औरतें ज्यादा बचती हैं।
अब बात केवल औरतों की. उनके धर्म के मुताबिक़. देखिए किस धर्म में शादी कर चुकी हर 1000 औरतों में कितनी तलाकशुदा हैं।

 

1. बौद्ध: 6-7

2. ईसाई: 5-6

3. मुसलमान: 5-6

4. जैन: लगभग 3

5. हिंदू: 2-3

6. सिख: 2-3

अब आप कहेंगे कि मुसलामानों से ज्यादा बौद्ध और ईसाई औरतें तलाकशुदा हैं. फिर तलाक पर इतना रोना क्यों? रोना इसलिए कि जब हम तलाकशुदा मुसलमान औरतों और पुरुषों को कंपेयर करते हैं, तो पाते हैं कि औरतों और पुरुषों में बड़ा फर्क है।

जहां हजार में 5 से 6 मुसलमान औरतें तलाक भोग रही हैं, मुसलमान मर्दों की संख्या महज 1-2 है. इसका मतलब ये हुआ कि औरतें पुरुषों से 3 गुना ज्यादा हैं, जो तलाक भोग रही हैं. वजह ये है कि पुरुष तो तलाक के बाद दोबारा शादी कर लेते हैं. मगर औरतों की छवि इतनी बुरी, ठुकराई हुई औरत सी हो जाती है कि वे दोबारा शादी नहीं कर पातीं. वो तलाकशुदा औरतों की तरह जीते हुए पूरी जिंदगी बिता देती हैं।

भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन ने 5 हजार औरतों पर एक सर्वे किया. जिससे पता चला कि लगभग 525 औरतें तलाकशुदा हैं. जिनमें से लगभग 80 फीसदी का तलाक एकतरफ़ा था. यानी बिना उनकी मर्जी से, उनके पतियों ने उन्हें तलाक दे दिया था।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि ट्रिपल तलाक एक ऐसी रूढ़िवादी परंपरा है जिसका खामियाजा औरतें सालों से भुगत रही हैं. मगर मुसलामानों की पहचान का मसला बनाकर इसे किनारे कर दिया जाता है. ये सवाल कोई नहीं उठाता कि सालों पुरानी परम्पराओं का बोझ उठाने का जिम्मा औरतों के कन्धों पर ही क्यों डाला जाता है।

 

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