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उत्तर प्रदेश से सीएम पद के कैंडिडेट के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नाम को अंतिम रूप दिया

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं पार्टियों की कवायद तेज होती जा रही है। भाजपा ने इलाहाबाद से हाल में विधानसभा चुनाव का बिगुल फूँका है और अब कांग्रेस की ओर से भी एक बड़ी खबर मिल रही है। खबर है कि यूपी चुनाव के लिए शीला दीक्षित को कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है।

कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शीला दीक्षित और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच हुई मुलाकात के बाद इस मामले अंतिम निर्णय ले लिया गया है । सूत्रों ने बताया कि जल्दी ही इस संदर्भ में आधिकारिक तौर पर घोषणा की जायेगी । यूपी में कांग्रेस किसी सीनियर लीडर को चेहरा बनाना चाह रही है जो जनरल कैटेगरी से आता हो। इसलिए शीला को मैदान में उतारने की स्ट्रैटेजी बनाई जा रही है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस के नए रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश के सभी ब्लॉक अध्यक्षों के साथ बैठक के बाद कांग्रेस आलाकमान को यह सुझाव दिया था कि किसी गांधी चाहे वह राहुल हों या प्रियंका को उत्तर प्रदेश का जिम्मा लेना चाहिए जो संभव नहीं हो पाया। प्रशांत किशोर की तीसरी पसंद शीला दीक्षित थीं।

शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश के ब्राहमण नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे से हुई थी तो इस लिहाज से शीला दीक्षित उत्तर प्रदेश में बहू मानी जाती हैं। शीला दीक्षित कन्नौज से सांसद भी रह चुकी हैं। दिल्ली में कांग्रेस को शिखर पर पहुंचाने वालीं 78 साल की शीला दीक्षित 2013 के विधानसभा चुनाव में हार गई थीं और उनकी पार्टी हाशिए पर पहुंच गई थी। भला हो कांग्रेस आला कमान का जिसने उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया। इसलिए यह तो माना जा रहा है कि पार्टी में फेरबदल होने पर उन्हें महासचिव जैसा महत्त्वपूर्ण पद मिल सकता है, लेकिन दिल्ली के नेता तो उनके परछाई से भी दूर भागने लगे हैं। दिल्ली के कांग्रेस नेताओं में शीला दीक्षित से ज्यादा उनके बेटे और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित का विरोध है।

शीला दीक्षित पहली बार 1984 में सांसद बनकर राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री कार्यालय की मंत्री बनी थीं। बाद में वे मुख्यधारा से अलग हो गर्इं, लेकिन 1998 में कांग्रेस ने उन्हें पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और चुनाव हारने के बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी गई। 1998 के विधानसभा चुनाव से शीला दीक्षित ने जीत का जो सिलसिला शुरू किया वह 2008 तक जारी रहा। पहले जो नेता उन्हें बाहरी बताकर नजरअंदाज करते थे वही उनके सामने दंडवत होने लगे। 2013 में आम आदमी पार्टी (आप) की आंधी ने कांग्रेस के किले को ढहाया तो 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के तूफान ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।

 

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