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क्या क़ुरआन को समझने के लिए हदीस को पढ़ना ज़रूरी है?

आप सभी को पता ही होगा कि इस्लाम के पांच प्रमुख स्तम्भ  है, नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात और शहादा. क़ुरआन में अल्लाह ने इंसान को सही रास्ते पर लाने के लिए बहुत सारे किस्से बयान किये है. क़ुरआन एक नसीहत नामा है, जिसको अक्सर मुसलमान समझकर नहीं पड़ते हैं. सूरह क़मर में अल्लाह ने फरमाया है कि ” हमने क़ुरआन को समझने और याद करने में बहुत ही आसान बनाया है, फिर भी क्या इंसान इससे नसीयत नहीं लेगा?”

आजकल इस्लाम को तक़रीबन 73 फिरको में बांटा गया है, और यह भी कहा जाता है कि सिर्फ एक फिरका ही जन्नत में जाएगा. तो क्या कोई यह भी बताएगा कि वह एक फिरका कोनसा है. जबकि क़ुरआन में यह भी कहा गया है कि इस्लाम को फिरको में बांटना बिलकुल ही गलत है. यह बात सूरह अनाम में कही गयी है, फिर भी इंसान इस बात को क्यों नहीं समझते है. क्यों इस्लाम को फिरको में बाँट रखा है?

हम सब ही नमाज़ पड़ते हैं, लेकिन हम में से कितने नमाज़ में पड़ी जाने वाली आयत या सूरत का मतलब जानते हैं. शायद ना के बराबर ही लोग यह जानते होंगे. जैसे कि सूरह फातिहा का मतलब भी बहुत काम ही लोग जानते होंगे, जो कि हर नमाज़ में सबसे पहले ही पड़ी जाती है. हमे क़ुरआन को समझकर पढ़ना चाहये और अपनी ज़िन्दगी को क़ुरआन के मुताबिक़ जीना चाहये.

अल्लाह ने खुद ज़िम्मेदारी ली है कि क़ुरआन में कभी भी कोई बदलाव नहीं आ सकता है.  आजकल हम आजकल हदीसो पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे है, जो कि इंसान की लिखी हुई है. क्या यह सही है?

आजकल मुसलमान शिया-सुन्नी के नाम पर आपस में लड़ रहे हैं, जो की बिलकुल ही गलत है. आजकल दुनिया भर में मुसलमानो की हालत बहुत ही खराब है, तो क्या आज हमको सिर्फ मुसलमान बनकर खड़ा नहीं होना चाहये. और इस फिरकापरस्ती को बंद करना चाहये.

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