बीजिंग: चीन ने एक बार फिर न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) मेंबरशिप को लेकर भारत पर निशाना साधा है। चीन ने ये उस वक्त किया है जब भारत के राष्ट्रपति 4 दिन के दौरे पर चीन पहुंचने वाले हैं। चीन ने भारत के तर्क का विरोध करते हुए कहा है कि फ्रांस एनएसजी का फाउंडर मेंबर है। लिहाजा उसका भारत की मेंबरशिप को मान्यता देना मायने नहीं रखता। चीन ने कहा, ‘भारत को एनएसजी मेंबरशिप हासिल करने के लिए भरोसा हासिल करना चाहिए। ये बेहतर होगा कि भारत पहले एनपीटी पर साइन करे।
अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने का मुद्दा उठाया- चीन सरकार ने इसके साथ ही परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न किए जाने वाले देशों का मुद्दा भी उठाया और कहा कि भारत, पाकिस्तान और इजरायल जैसे देशों को एक नजरिए से देखा जाना चाहिए।
चीन ने खारिज किया भारत का रुख -चीन के भारत पर ऐसा दबाव बनाने की कोशिश की तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने फ्रांस का नाम सामने लाते हुए कहा था कि फ्रांस एनएसजी का सदस्य है और परमाणु हथियारों का व्यापार करता है, जबकि वह अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने वाला देश भी है. हालांकि चीन ने भारत के इस रुख को खारिज कर दिया। चीन ने कहा कि फ्रांस एनएसजी का संस्थापक सदस्य है और ऐसे में उसकी सदस्यता को स्वीकार किए जाने का सवाल कहां पैदा होता है।
‘नए सदस्य करें एनटीपी पर हस्ताक्षर‘ -चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन का यही रुख है कि एनएसजी में शामिल होने वाले सभी नए सदस्यों को परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करना चाहिए। उन्होंने भारत के इस बयान को खारिज कर दिया कि फ्रांस को एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से पहले इस समूह में शामिल किया गया था.
हुआ ने कहा, ‘एनएसजी एनपीटी पर आधारित अप्रसार व्यवस्था का प्रमुख अंग है. इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में दीर्घकालीन सहमति है और पिछले साल एनपीटी समीक्षा सम्मेलन में इसे दोहराया गया था.’ माना जा रहा है कि मंगलवार से शुरू हो रहे मुखर्जी के चीन दौरे पर एनएसजी की सदस्यता के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है।