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समुंद्र के बीच है हाजी अली दरगाह लेकिन फिर भी कभी नहीं डूबता, आखिर क्यों

क्या आपनमे कभी सोचा है की समुद्र के बीचो बीच स्थित हाजी अली दरगाह आखिर इतना पानी होने पर भी डूबता क्यों नहीं है, नहीं सोचा तो चलए आज हम आपको इसके पीछे जो राज़ है वो बताते हैं।  हाजी अली दरगाह के नाम से मशहूर यह दरगाह हाजी अली शाह बुख़ारी की हैं। माना जाता है कि यहां पर सच्चें मन से कोई बात धागे के साथ बोलो तो हर मुराद जरुर पूरी होती है। अल्लाह किसी का कभी बुरा नहीं चाहता है।

15 वीं शताब्दी में मुंबई के वरली में स्थित समुद्र के किनारे हाजी अली की इस दरगाह को बनाया गया थ। इस दरगाह की अपनी ही खास बात है वो है जमीन से कम से कम 500 गज दूर समु्द्र के अंदर बनी हुई बनी हुई है। इस दरगाह तक पंहुचने के लिए लोगों को लंबी रास्ता तय करना पडता है। इसके लिए पुल बना हुआ है। यह पुल सीमेंट का बना हुआ है। जोकि दोनो ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। यहां पर हमेशा ज्वार आता रहता है। जिसके कारण यहां का पूल बंद कर दिया जाता है। इस पुल से न कोई दरगाह जा सकता है और न ही कोई दरगाह से आता है।

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आपको पाता है इसमे सबसे बड़ा चमत्कार क्या है। वो है ज्वार के वक़्त चढ़े हुए समुद्र के पानी की एक बूंद भी इस दरगाह के भीतर नहीं जाती हैं। जिसके कारण यहां का नजारा और ही खूबसूरत हो जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी है कि आखिर दरगाह के अंदर एक भी पानी की बूंद कैसे नहीं जाता है। कहा जाता है कि पीर हाजी अली शाह ने शादी नहीं की थी और उनके बारे में जो कुछ मालूम चला है वो दरगाह के सज्जादानशीं (caretakers), ट्रस्टी और पीढ़ी दर पीढ़ी से सुनी जा रहे क़िस्सों से ही चला है। जब अपनी मां की अनुमति लेकर व्यापार करने पहली बार अपने घर से निकले थे तब मुंबई वरली के इसी इलाक़े में रहने लगे थे। यहां पर रहते हुए उन्हें यह महसूस हुआ कि वह अपने आगे का जीवन यहीं पर अपने धर्म का प्रचार करते हुए बितायेंगे। जिसके कारण इन्होनें अपनी मां को खत लिखकर इसकी जानकारी दी। साथ ही अपनी पूरी धन-संपत्ति जरुरतमंदों में बांट कर प्रचार करने लगे।

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भौतिक जीवन से जुड़ी अपनी हर चीज़ लोगों को दे देने के बाद, हाजी अली सबसे पहले हज की यात्रा पर गए लेकिन इस यात्रा के दौरान उनकी मौत हो गयी। इस बारे में ऐसी मान्यता हैं कि हाजी अली की अतिम इच्छा थी कि उनको दफनाया न जाएं बल्कि उनके कफन को समुद्र में डाल दी जाए। इसी कारण उनका ताबूत अरब सागर में होता हुआ मुंबई की इसी जगह पर आ रुका और आश्चर्य की बात ये रही कि बीच में कहीं भी हाजी अली का ताबूत न डूबा न उसके अंदर पानी गया। यहां पर आकर एक चट्टान में आकर रुक गया। इसके बाद उसी जगह पर 1431 में उनकी याद में दरगाह बनाई गई। इसी कारण आज भी माना जाता है कि उनकी दरगाह इसी टापू पर बनाने का निर्णय लिया। मान्यता हैं कि आज भी समुद्र तेज़ ज्वार के समय भी हाजी अली शाह बुख़ारी के अदब के चलते कभी अपने दायरें नहीं तोड़ता हैं

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