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17 वे कारगिल विजय दिवस पर भारत के वीर जवानों को सलाम, पीएम और राष्ट्रपति ने शहीद हुए जवानों को किया नमन

नई दिल्ली: आज देश आज विजय दिवस मना रहा है। आज ही के दिन 17 साल पहले भारतीय सेना ने घुसपैठियों को खदेड़कर भारत की ज़मीन से बाहर कर दिया था। इस मौके पर आज दिल्ली में अमर जवान ज्योति पर तीनों सेना ‌के प्रमुख और रक्षा मंत्री ने करगिल में जान गंवाने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस मौक पर करगिल में शहीद हुए सैनिकों को नमन किया।

कारगिल युद्ध की कुछ खास बातें

1999 में कारगिल में युद्ध शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले जनरल परवेज मुशर्रफ हेलीकॉप्टर से भारत आए थे। भारतीय सीमा के 11 किलोमीटर अंदर जिकरिया मुस्तकार में उन्होंने एक रात बिताई थी। मुशर्रफ के साथ 80 ब्रिगेड के उस वक्त के कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि कारगिल की लड़ाई उम्मीद से ज्यादा खतरनाक थी। भारतीय सेना पाकिस्तान की सेना पर भारी पड़ रही थी। यह देखकर मुशर्रफ ने युद्ध में परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली थी। एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था। पाकिस्तानी सेना 1998 से ही कारगिल युद्ध करने की कोशिशों में थी। इसके लिए उन्होंने अपने 5000 जवानों को कारगिल की चढ़ाई करने के लिए भेजा था।

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी एयरफोर्स चीफ को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। बाद में जब एयरफोर्स चीफ को इस ऑपरेशन के बारे में बताया गया तो उन्होंने इस ऑपरेशन में पाकिस्तानी सेना का साथ देने से मना कर दिया था। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने 2700 से ज्यादा सैनिक गंवाए थे। इस लड़ाई में उन्हें 1965 और 1971 से ज्यादा नुकसान हुआ था। नवाज शरीफ ने भी माना था कि कारगिल युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए आपदा साबित हुआ।

इंडियन एयरफोर्स ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया था। मिग-27 की मदद से उन जगहों पर बम गिराए थे जहां पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा था। साथ ही मिग-29 से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिलाइलें दागी गईं थीं। 8 मई को शुरू हुए इस युद्ध में 11 मई से इंडियन एयरफोर्स की एक टुकड़ी ने सेना की मदद करनी शुरू कर दी थी। कारगिल की लड़ाई के स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस दौरान एयरफोर्स के 300 विमान उड़ान भरते थे।

करगिल में उड़ान भरना इतना आसान नहीं था। इसमें हरपल जान का खतरा रहता था। कारगिल समुद्र तल से 16000 से 18000 फीट की ऊंचाई पर है। ऐसे में उड़ान भरने के लिए विमानों को करीब 20 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता है। इतनी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से कम होता है। ऐसे हालातों में विमान में पायलट का दम घुटने का खतरा साथ ही विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा रहता है। 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में 2,50,000 गोले और रॉकेट दागे गए थे। 300 से ज्यादा तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों से रोजाना करीब 5,000 बम फायर किए जाते थे। लड़ाई के अहम 17 दिनों में हर रोज हर आर्टिलरी बैटरी से एवरेज एक मिनट में एक राउंड फायर किया गया था। सेकेंड वर्ल्ड वार के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी, जिसमें किसी एक देश ने दुश्मन देश की सेना पर इतनी ज्यादा बमबारी की थी।

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