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स्मार्ट सिटी मतलब स्मार्ट आईडिया

पुणे: स्मार्ट सिटी मिशन की पहली वर्षगांठ पर पीएम मोदी ने शनिवार को पुणे में स्मार्ट सिटी से संबंधित नया प्रपोजल जारी किया। इस प्रपोजल में सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट, प्लास्टिक बोटल रीसाइकलिंग से लेकर इंफोरमेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी तक शामिल है।

इसके अलावा ई-पाठशाला, इंटेलिजेंट ट्रांजिट मैनेजमेंट सिस्टम, इंटेलिजेंट स्ट्रीट पोल्स और मल्‍टीपर्पज स्मार्टकार्ड शामिल हैं। इस प्रपोजल में इतना सारा है, लेकिन जमीनी सच देखें तो यह खयाली पुलाव ही लगता है। पिछले साल जून में जब स्मार्ट सिटी मिशन लॉन्च किया गया था तो पीएम मोदी ने 2022 तक 100 स्मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्य रखा था। इसमें सरकार की ओर से शुरुआती 50 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की बात कही गई थी। मिशन को लेकर आर्थिक और व्यवहारिक स्तर जो महत्वकांक्षाएं बनाई गई थीं, उन्होंने कई लोगों को निराश ही किया है। जो लक्ष्य तय किए गए थे वह और ज्यादा दूर होते जा रहे हैं। नई बात यह समाने निकलकर आ रही है कि कोई भी सरकार इसे पांच साल में पूरा नहीं कर सकती।

पूरी तरह से शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर बदलने से संबंधित है। इसमें पानी की सप्लाई, सिवरेज, वेस्ट कलेक्शन, अर्बन मॉबिलिटी और आईसीटी सहित अन्य सर्विस शामिल हैं। इन्हें टाइम से शुरू करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है। शहरी भारत में मौजूदा सर्विस स्तर दिखाता है कि शहरी विकास मंत्रालय ने इस शुरुआती टाइम प्रोजेक्शन में बदलाव क्यों किया। 2011 में 1405 शहरों के किए गए अध्ययन के मुताबिक केवल 50 फीसदी शहरी इलाकों में पानी सप्लाई के कनेक्शन हैं। शहरों में पानी की सप्लाई केवल तीन घंटों के लिए है, जबकि यह 24 घंटे के लिए होनी चाहिए।

जब बात सिवरेज नेटवर्क की आती है तो 30 फीसदी घरों में टॉयलेट नहीं है और 12 फीसदी सिवरेज नेटवर्क से कनेक्ट हैं। वहीं सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट सर्विस की बात आती है तो वह 35 फीसदी घरों तक ही है, जबकि 10 फीसदी से काम वेस्ट वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोजल किया जाता है। स्मार्ट सिटी बनाए जाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में और सुधार की जरूरत है। स्मार्ट सिटी अभी भी कागजों में नजर आ रही है, बजाए सच्चाई के।

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