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यादव वोट बैंक नहीं बल्कि यह है सपा-बसपा गठबंधन टूटने की असली वजह

लोकसभा चुनाव में करारी मिली हार के बाद एसपी-बीएसपी गठबंधन औपचारिक रूप से टूट गया है। मायावती ने भले ही ये कहा हो कि एसपी-बीएसपी के रिश्ते बने रहेगें लेकिन विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ने के ऐलान के बाद ये साफ हो गया है कि दोनों पार्टियां अब एकला चलो रे की राह पर हैं।

वोट बैंक

मायावती ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि यादवों ने बीएसपी उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया इसलिए गठबंधन को समाप्त करना पड़ा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या गठबंधन सिर्फ इसिलिए टूटा है? अगर आकड़ों पर नजर डालें तो बीएसपी सुप्रीमों मायावती का ये दावा सही नहीं दिखता।

लालगंज, घोषी और गाजीपुर जैसी सीटें बीएसपी ने यादव वोट बैंक के सहारे ही जीती है, तो आखिर गठबंधन तोड़ने की असली वजह क्या है? दरअसल राजनीतिक गठबंधन कभी भी स्थाई नहीं माने जाते हैं। ऐसे में जब एसपी-बीएसपी जैसे दो कट्टर विरोधी विचारधारा की पार्टियां आपस में गठबंधन करती हैं तो गठबंधन स्थाई हो ही नहीं सकता।

भले ही एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती गठबंधन के लंबे अर्से तक चलने का दावा कर रहे थे लेकिन राजनीतिक जानकार उस दिन से ही गठबंधन के टूटने की अटकले लगाने लगे थे, जिस दिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे। बीजेपी नेता तो बार-बार ये बयान दे रहे थे कि ये गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव तक है यानी गठबंधन का कारण सिर्फ मोदी विरोध ही है।

सुत्रों की माने तो मायावती पहले ही तय कर चुकी थीं कि लोकसभा चुनावों के बाद गठबंधन की समीक्षा करेंगी। बीएसपी की समीझा बैठक के बाद ये साफ हो गया कि गठबंधन आगे जारी रखना मायावती के लिए घाटे का सौदा है।

ये है गठबंधन टूटने की असली वजह

सूत्रों की माने तो गठबंधन करते समय ही यह तय हो गया था कि लोकसभा चुनाव मायावती के नेतृत्व में लड़ा जाएगा जबकि विधानसभा चुनाव एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में। गठबंधन के ऐलान के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में इशारों-इशारों में ही सही अखिलेश ने मायावती को गठबंधन का प्रधानमंत्री उम्मीदवार मान लिया था।

ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव तक गठबंधन जारी रहता तो बीएसीप सुप्रीमो को अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री उम्मीदवार मानना पड़ता।

मायावती और उनकी टीम यह कभी नहीं चाहेगी कि वो उस जमीन को छोड़े, जिसके बल पर वह देश की राजनीति करती हैं। ऐसे में मंगलवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने सिर्फ उतना ही बोला, जिससे औपरचारिक रूप से गठबंधन खत्म हो जाए लेकिन जरूरत पड़ने पर बातचीत की गुंजाइश बनी रहे।

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