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वेश्यावृति के दलदल में फंसे इस क्षेत्र में लड़की पैदा होने पर मनाते हैं खुशियां, लड़के को गर्भ में ही मार देते हैं

बाड़मेर: राजस्थान के इस इलाके में ऐसा होता है। यहाँ लड़कों की नहीं लडकियों की कीमत है। पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र में बाड़मेर के समदड़ी क्षेत्र के सांवरड़ा, करमावास, सुइली, मजलव लाखेटा इत्यादि गावों में ऐसा ही होता है। कारण है यहां की महिलाओं का वैश्यावृति का धंधा। वेश्यावृति के दलदल में फंसे इस क्षेत्र की सबसे बड़ी ओर आश्चर्यजनक हकीकत जान आप भी आश्चर्यचकित रह जाएंगे।

यहां गर्भ में लड़के मारे जाते हैं यहां पर जो होता चला आ रहा है वह निश्चित रूप से अशिक्षा, गरीबी का परिणाम है। देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं लड़कों को लिंग परीक्षण के पश्चात गर्भ में ही खत्म कर देती है और लड़की का जन्म इनके लिए खुशियां लेकर आता है। हालात यह है कि 400 घरों वाली आबादी वाले करमावास, सावरंड़ा क्षेत्र में मात्र 30 फीसदी ही पुरुष है बाकी सभी महिलाएं है। जो अपने परिवार को देह बेच कर पालती है। बताया जाता है कि, कई बार राज्य सरकार को इस गंदे धंधे के बारे में बताया गया लेकिन एक संस्था के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आया जो इन्हें 21 वीं सदी के साथ जोडऩे की कोशिश करे। समदड़ी कस्बे में स्थित राजकीय अस्पताल में ये महिलाएं लिंग परीक्षण भी आवश्यक रूप से कराती हैं। इसके पीछे मकसद है कि कहीं उनके गर्भ से लड़का जन्म ना ले ले।

इनका मानना है कि, लड़की पैदा होगी तो उनके धंधे को आगे बढ़ाएगी। इसलिए ये महिलाएं लड़कियां पैदा होने पर थाली बजाकर उसका स्वागत करती है। गरीबी से मजबूर और कोई काम धंधा ना होने के चलते अधिकतर महिलाएं देह व्यापार के धंधे में चली जाती हैं। इससे आसपास की सामाजिक संस्कृति पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से अधिकांश ग्रामीणों को तनाव का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी गांवो में सड़कों के किनारे इस धन्धे में लिप्त युवतियां सजधज कर आने जाने वाले राहगीर को न्यौता देती है। 15 से से लेकर 45 साल तक उम्र की महिलाऐं इस धंधे में लिप्त हैं। जिसमें परिवार के पुरूष एवं वृद्ध महिलाएं ग्राहकों को तलाशने में इनकी मदद करती हैं। क्षेत्र के इतिहास को लेकर बताया जाता है कि, जिले के सिवाना क्षेत्र के गांवो में जागीरदारों व जमींदारों ने अपनी अय्याशी के लिए इन महिलाओं को लाकर खण्डप, करमावास, सांवरड़ा,मजल, कोटड़ी, अमरखा आदि गावों में दशकों पूर्व लाकर बसाया था। लेकिन सामंतवादी प्रथा समाप्त होने के बाद इन महिलाओं के सामने जब पेट पालने की मुसीबत हो गई, दो वक्त का खाना जुटाना मुश्किल हो गया और सामंतो ने भी निगाहें फेर ल तो इन महिलाओं ने समूह बनाकर देह व्यापार का कार्य आरम्भ किया। बतया जाता है कि ये महिलाएं साटिया जाति से संबंध रखती हैं जो पिछले 40 वर्षों से देहव्यापार के धंधे में लिप्त है। इन महिलाओं द्वारा शादी नहीं की जाती। मगर ये अपनी बच्चियों को जन्म दे देती है।

आज इन गावों में लगभग 450 महिलाएं खुले आम देह व्यापार करती है। यहाँ के ज्यादातर बच्चे अशिक्षित हैं लेकिन अब जो विद्यालयों में अध्यनरत है उन बच्चों के पिता के नाम की बजाए माता का नाम ही अभिभावक के रूप में दर्ज है। कईयों को तो पिता का नाम भी नहीं पता होता। जहाँ इनका निवास स्थान है उस गांव के बाहर ही नगर वधुओं की बस्तियां है। इन तीन गांवों में 400 परिवार नगर वधुओं के है। ये सब अशिक्षा और गरीबी के कारण होता है। यदि सरकार इनकी ओर ध्यान दे तो इनका उत्थान कर उन्हे शिक्षित कर समाज तथा शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है।

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