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जब योगी सरकार ने इलाहबाद का नाम बदलकर रखा प्रयागराज तो हाई कोर्ट ने कुछ इस तरह से लगाई लताड़



हम आपको बता दें कि एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए, इलाहाबाद जनपद का नाम प्रयागराज किए जाने को चुनौती दी गई है।  हम आपको यह भी बता दें कि याचिका पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य व केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

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न्यायालय ने जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय देते हुए, अग्रिम सुनवाई के लिए 19 नवम्बर की तिथि निर्धारित की है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति आरएस चौहान की खंडपीठ ने हरिशंकर पांडेय की जनहित याचिका पर दिया।

याचिका में राजस्व संहिता की धारा 6(2) का हवाला देते हुए कहा गया है कि नाम परिवर्तन के लिए राज्य सरकार द्वारा आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। बिना आपत्तियां आमंत्रित किए ही जनपद का नाम बदल दिया गया।

याची ने यह भी आरोप लगाया है कि राज्यपाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति और मुख्यमंत्री ने कुछ संतों के साथ बैठक कर के यह निर्णय ले लिया। वहीं याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया।

राज्य सरकार की ओर से पेश अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने दलील दी कि राजस्व संहिता की धारा 6(2) में किसी राजस्व क्षेत्र के सीमाओं के परिवर्तन पर आपत्तियां आमंत्रित करने को निर्देशित किया गया है न कि नाम परिवर्तन के मामले पर। न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद प्रतिवादियों को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

क्या है राजस्व संहिता की धारा 6(2)?

राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी राजस्व क्षेत्र की सीमाओं को समामेलित, पुनःसमायोजित, विभाजित करके या किसी अन्य रीति से, वह चाहे जो भी हो, परिवर्तित कर सकती है या किसी ऐसे राजस्व क्षेत्र को समाप्त कर सकती है

और किसी ऐसे राजस्व क्षेत्र का नामकरण कर सकती है और उसके नाम में परिवर्तन कर सकती है और यदि जहां किसी क्षेत्र का पुनः नामकरण कर दिया जाए, तो वहां उक्त क्षेत्र के किसी विधि या लिखत या अन्य दस्तावेज में उसके मौलिक नाम से किए गए निर्देशों को, जब तक कि अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित न किया जाए, पुनः नामकरण किए गए क्षेत्र का निर्देश समझा जाएगा:

परंतु किसी राजस्व क्षेत्र के सीमाओं को परिवर्तित करने के किसी प्रस्ताव पर इस उपधारा के अधीन कोई आदेश पारित करने के पूर्व राज्य सरकार आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए ऐसे प्रस्तावों को विहित रूप से प्रकाशित करेगी और ऐसे प्रस्तावों के सम्बंध में की गई आपत्तियों पर विचार करेगी।

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