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सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट से 2019 लोकसभा चुनाव कराने को लेकर सुनाया यह बड़ा फैसला

चुनावों में धांधली का मुद्दा हमेशा से उठता रहा है। बहुत कम चुनाव ऐसे मिलेंगे जिसको लेकर कोई न कोई किसी न किसी तरह की धांधली की शिकायत न करता हो।

supreme court decision regarding elections from vvpat वीवीपैट

बीते कुछ चुनावों में तो यह बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था। ईवीएम के साथ वीवीपैट के इस्तेमाल को जरूरी बनाने और चुनावों में ईवीएम का उपयोग न किए जाने तक की वकालत की गई। हालांकि चुनाव आयोग ईवीएम से ही चुनाव कराने पर तैयार है।

आयोग ने पर्चियों की मांग स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। आयोग की ओर से कहा गया था कि वह इस बारे में भारतीय सांख्यिकी संस्थान से राय लेगा।

दरअसल, चुनाव आयोग ऐसा कोई तर्क सुनने को तैयार नहीं है कि ईवीएम के माध्यम से किसी तरह की धांधली की जा सकती है। यह जरूर हुआ है कि वीवीपैट के इस्तेमाल की व्यवस्था कर दी गई है।

इसके बाद भी राजनीतिक पार्टियां संतुष्ट नहीं हो रही हैं। तभी तो कुछ समय पहले देश की 21 विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि ईवीएम और वीवीपैट की 50 प्रतिशत पर्चियों को मिलाया जाना चाहिए ताकि स्पष्ट हो सके कि वोट उसी प्रत्याशी को पड़ा है जिसे मतदाता ने वोट दिया है।

ये दल चुनाव आयोग से पहले से मांग करते आ रहे थे। वहां से कोई सकारात्मक जवाब न मिलने की स्थिति में इन दलों ने याचिका दायर की थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर इस बारे में उसकी राय मांगी है।

यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि इस बार चुनाव में हर मतदान केंद्र पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा। अभी तक चुनावों में एक विधानसभा सीट पर सिर्फ एक ही ईवीएम के मतों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाता है।

इसके बाद भी अब से कुछ समय पहले हुए चुनावों में धांधली की शिकायतें पार्टियों और प्रत्याशियों की ओर से की गई थीं। मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट से जो भी फैसला आए अथवा चुनाव आयोग चाहे जो व्यवस्था बनाए, आम चुनावों के बाद भी यह मुद्दा उठ सकता है।

हालांकि वीवीपैट का मुद्दा मतदान के दौरान अथवा चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद ही उठने की आशंका ज्यादा है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनाव आयोग को नोटिस जारी किए जाने के बाद यह मुद्दा नए सिरे से गरमा चुका है। विपक्षी पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को उठाकर लोगों में चर्चा की शुरुआत कर सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि विपक्षी पार्टियां लगातार यह आरोप लगाती रही हैं कि चुनाव जीतने के लिए सत्ताधारी भाजपा की ओर से ईवीएम में गड़बड़ी कराई जाती है। इसके विपरीत भाजपा की ओर से न केवल इसका पुरजोर खंडन किया जाता रहा है बल्कि विपक्ष को आड़े हाथों लिया जाता रहा है कि वह चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर एक सम्मानित और विश्वसनीय संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है।

चुनाव आयोग ने भी न केवल इस संभावना से इनकार किया है कि ईवीएम में किसी तरह की छेड़छाड़ की जा सकती है बल्कि उसने विपक्षी दलों को एक बार यह चुनौती भी दे डाली थी कि ईवीएम में छेड़छाड़ कर दिखाएं। आम आदमी पार्टी ने इस चैलेंज को स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन बाद में कुछ तर्कों के साथ पीछे हट गई थी।

इस पूरे विवाद को समझने के लिए यह जान लेना भी जरूरी है कि ईवीएम के जरिये चुनाव में धांधली की शिकायत कोई नई बात नहीं है। इसके विपरीत यह एक तथ्य है कि इस बारे में पहली बार और प्रमुखता के साथ शिकायत भाजपा की ओर से की गई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 2009 में ईवीएम से धांधली का आरोप लगाया था।

आडवाणी ने यह भी मांग की थी कि चुनाव मतपत्र के जरिये कराए जाने चाहिए। इस चुनाव में आडवाणी प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हैं।

लेकिन परिणाम आए तो पता चला कि भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तब भाजपा ने ईवीएम के खिलाफ अभियान भी चलाया था। इतना ही नहीं, उस समय भाजपा के प्रवक्ता रहे वरिष्ट पार्टी नेता जीवीएल नरसिंहा राव ने ईवीएम को लेकर एक किताब भी लिखा थी जिसकी भूमिका खुद लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी।

यह अलग बात है कि जब विपक्ष की ओर से ईवीएम पर सवाल उठाए जाने लगे तो भाजपा ने इस तथ्य को अस्वीकार करना शुरू कर दिया कि उसकी ओर से ऐसा कुछ किया था।

बहरहाल, अभी तो मामला सुप्रीम कोर्ट में है और चुनाव आयोग को इस पर जवाब देना है और फिर सर्वोच्च न्यायालय को फैसला देना है। यह फैसला भी चुनाव परिणामों की घोषणा के पहले आएगा अथवा बाद में, यह भी देखने की बात होगी।

लेकिन एक बात तो तय मानी जा सकती है कि विपक्ष इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं लगता। संयुक्त विपक्ष के सुप्रीम कोर्ट जाने के फैसले से ही एक तरह से यह तय हो गया था कि वह इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं बल्कि लगातार बनाए रखने की कोशिश में है।

इसी से यह भी स्पष्ट है कि आम चुनावों के बाद इस मुद्दे को उठने से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि इसकी संभावना तब ज्यादा होगी जब चुनावों में विपक्ष को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती।

यह भी हो सकता है कि जीत की स्थिति में इस मुद्दे पर विपक्ष चुप्पी पर साध ले। लेकिन इतना तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट से इस बारे में कोई फैसला आएगा ही जो इस बारे में एक दिशा तय करेगा कि भविष्य में ईवीएम को लेकर क्या किया जाना है।

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