नई दिल्ली: 44 वर्षीय इरोम शर्मिला, AFSPA को मणिपुर से हटवाने की मांग को लेकर पिछले 16 वर्षों से अनशन पर बैठी थी। 9 अगस्त को उन्होंने ये अनशन खत्म किया है। मगर देश के लिए ऐसी विचारधारा कितनी खतरनाक हो सकती है इस महिला का कहना है कि – ” मणिपुर जैसे ‘peaceful’ राज्य मे इस एक्ट की कोई ज़रूरत नही है। बल्कि खुद सेना ही मासुम, निर्दोष लड़कों पर अत्याचार करती है। ”
मगर बता दें कि मणिपुर मे उग्रवादी गुटों का इतिहास काफी पुराना रहा है और इस छोटे से कथित शांत राज्य मे तकरीबन 39 उग्रवादी संगठन है, जो चीन के इशारों पर काम कर रहे हैं। मणिपुर के ये उग्रवादी संगठन भारत से अलग होकर आज़ाद मणिपुर के मिशन पर काम कर रहे हैं और माना जाता है कि शर्मिला उन्हीं का एक मोहरा है। कश्मीर मे सेना पर पत्थर बरसाने वाले लोगों को देशवासी खुब गरियाते है। पर इधर इरोम शर्मिला के बारे में कुछ ठीक से जाने बगैर ही सोशल मीडिया पर उसको एक सशक्त महिला के रूप मे प्रोजेक्ट कर उसका गुणगान करने मे लगे है। पर बता दें कि इरोम शर्मिला और यासिन मलिक मे कोई अंतर नहीं है। दोनो ही भारत विरोधी और भारतीय सेना विरोधी विचारधारा से ग्रस्त है। ऐसे लोगो का सक्रिय राजनीति मे आना अच्छी बात नही है। अगर भविष्य मे ऐसे लोगों के हाथ सत्ता चली गई तो देश का एक और विभाजन तय है। इसलिए भारत सरकार को ऐसे लोगों की राजनीतिक मंशा के खिलाफ बैरियर लगा देने चाहिए।
आतंकवादी गतिविधियों के चलते, 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) लागू है, इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है।