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योगी आदित्यनाथ ने दिया था भड़काऊ भाषण जिसकी जांच नहीं हुई और कोर्ट ने सुना दिया यह फैसला

हम आपको बता दें कि इलाहबाद हाईकोर्ट ने दो न्यायधीश की मौजूदगी में दो महीने पहले खोला गया सीलबंद रिकॉर्ड, जिसमें योगी आदित्यनाथ साल 2007 में भड़काऊ बयान देने की सीडी मिली थी। हम आपको यह भी बता देंन कि जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने उसे सीडी को ही सही मानने से इनकार कर दिया था।

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योगी के विवादित भाषण की वीडियो सीडी

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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक योगी के भड़काऊ भाषण वाली इस सीडी में उन्होंने गोरखपुर में मुसलमानों के लिए काफी विवादित बातें कही थी जिसके बाद ही सांप्रदायिक दंगों की चिंगारी भड़की थी। इस दौरान 2 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे।

इन सांप्रदायिक दंगों के समय योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा से बीजेपी के सांसद थे। पिछले साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। 2007 में गोरखपुर के पत्रकार परवेज परवाज ने इस भाषण और हिंसा के लिए आदित्यनाथ के खिलाफ पुलिस में आपराधिक मामला भी दर्ज किया था।

सपा और बसपा सरकार ने दी मामले को तूल

इस दौरान यूपी में मुलायम सिंह यागदव, अखिलेश यादव व मायावती की सरकार ने इस मामले पर कोई तूल ही नहीं दी थी। जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में उनके अभियोजन पक्ष के लिए रास्ता साफ किया था, लेकिन इस मामले में मुकदमा नहीं चलाया जा सका था।

पिछले साल ही मई में आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ हफ्ते बाद ही उनकी सरकार ने इलाहबाद कोर्ट से कहा कि, उसने 2007 के भाषण और हिंसा के लिए मुकदमा चलाने का फैसला नहीं किया था।

निर्णय एक आधिकारिक फोरेंसिक परीक्षा के निष्कर्षों पर आधारित था जिसने फैसला किया था कि आदित्यनाथ के भाषण के एक डीवीडी के साथ छेड़छाड़ की गई थी। सरकार ने दावा किया था कि परवाज ने पुलिस को इस डीवीडी को साक्ष्य के रूप में दिया था।

पत्रकार परवाज ने दायर की थी शिकायत

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पत्रकार परवाज ने इससे इनकार किया था कि योगी के भाषण की कोई सीडी उसने पुलिस को सौंपी थी। प्रक्रिया के अनुसार, इस तरह के दस्तावेज जांच अधिकारी द्वारा लिखित ‘पुनर्प्राप्ति मेमो’ से मिलेंगे लेकिन उपस्थित सरकारी वकील, राज्य के वरिष्ठ-सरकारी वकील, अधिवक्ता जनरल ऐसे दस्तावेज प्रदान करने में भी नाकामयाब रहे।

परवाज द्वारा पुलिस को सीडी सौंपे जाने का जिक्र सिर्फ 14 मार्च 2013 को दर्ज किए गए जांच अधिकारी की “केस डायरी” के आखिरी पन्ने पर है। अगर यह सच भी है कि परवाज ने वाकई में उस दिन पुलिस को सीडी / डीवीडी दी थी, तो इसके फोरेंसिक जांच के परिणाम नहीं हैं।

भाषण की सीडी का रहा अलग ही विवाद

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13 अक्टूबर 2014 को दो पन्नों की जांच रिपोर्ट में फोरेंसिक जांच करने वाली केंद्रीय फॉरेन्सिक विज्ञान प्रयोगशाला ने लिखा गया था कि, डीवीडी के अलावा फोरेंसिक जांच के लिए मुहरबंद पार्सल भेजा गया है। जिसका मतलब साफ है कि अगर परवाज के इनकार किए बिना भी मार्च 2013 में पुलिस को सीडी / डीवीडी प्रस्तुत की थी, तो उसे तुरंत बंद नहीं किया गया था।

परवाज ने जैसा दावा किया कि, सीडी वास्तव में उन रिकॉर्डों में पाई गई जो सीजेएम कार्यालय से सही नोटिंग के साथ साबित हुआ था कि परवाज ने इसे प्रस्तुत किया था। यह साफ नहीं हो पाया है कि सीजेएम की अदालत ने सीडी को जांच के लिए पुलिस अधिकारी को क्यों नहीं सौंपा और न ही फॉरेंसिक जांच के लिए ही सीडी को भेजा गया।

कोर्ट के सुरक्षित मामले की होगी 22 फरवरी को सुनवाई

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यह भी एक दुर्भाग्य ही था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को जानकारी मिल कि यह सीडी टूट गई है। सीडी पाने के लिए सीजेएम का रिकॉर्ड हालांकि इस तरह की कोई जानकारी नहीं देता है कि जब परवाज ने इसे प्रस्तुत किया था तो यह टूटी हुई थी।

वहीं इस पर सरकार का दावा था कि परवाज ने जो डीवीडी पेश की थी, उसे फोरेंसिक विभाग को भेजा गया था। बाद में उस वीडियो को संपादित और छेड़छाड़ किया गया था।

हाई कोर्ट में परवाज द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई 18 दिसंबर को खत्म हुई थी। न्यायाधीशों ने यह कहा कि उन्होंने फैसला सुरक्षित कर लिया था जिसका मतलब था कि बाद की तारीख में फैसला सुनाया जायेगा। अब यह मामला गुरुवार, 22 फरवरी को आएगा।

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